दलहनी फसलो में उड़द एंव मूंग खरीफ की मुख्य फसल है। कम अवधि की फसल होने के कराण यह अंतवर्तीय व बहुफसलीय पध्दति के लिए भी उपयुक्त है। सिंचाई की सुविधा होने पर इसे ग्रीष्म ऋतु में भी उगाया जाता है। म. प्र. में उड़द एंव मूंग की औसत उपज बहुत कम है। अतः उचित कीट एंव रोग प्रबंधन तकनीक अपनाकर उड़द एंव मूंग की उत्पादकता को बढाया जा सकता है।
प्रमुख कीट एवं रोग प्रबंधन
१.फली बीटल (पिस्सू भृंग)
फसल की द्विपर्ण अवस्था में ही पिस्सू भृंग के प्रौढ पत्तो को कुतरकरगोल गोल छेद बनाते है। जिससे प्रति पत्ता लगभग 1 से 10 छेद होकर 30.40:पत्ते क्षतिग्रस्त होते पाए गए। प्रकोप की स्थिति में पत्ते छन्नी जैसे दिखते है, फलतः पौधों की बाढ़ मारी जाने के साथ-साथ ये सूख भी जाते हैं। प्रौढ़ कीट छोटे शरीर वाला, लाल भूरी धारीदार व रात्रिचर होता है। यह स्पर्ष मात्र से ही उड़ जाता है। जबकी इस कीट की इल्ली (ग्रब) फसल की जडो की गठानों को खाकर हानी पहुचाती है।
नियत्रण:
- इसके नियंत्रण के लिए क्लोरपायरीफाॅस 20:ई. सी. या ट्राइजोफाॅस 40: ई. सी. 2 मिली. दवा/लीटर पानी की दर से छिड़काव करे|
२.फल्ली भेदक कीट
इस कीट की इल्ली काफी चंचल होती है। छोटी, मोटे शरीर वाली, मटमैलेरंग की होती है। यह इल्ली भी शुरू में पत्तियो, कलीयों तथा हरी फल्लीयों का जाला बनाकर खाती है। तत्पष्चात कीट हरी फल्लीयों के अन्दर घुसकर बढ़ते हुए दानों को खाती रहती है। इसके द्वारा उड़द-मूंग को 15.20: तक हानि होती है।
नियत्रंण:
- इसके नियंत्रण हेतु प्रोफेनोफाॅस 5०% ई. सी. या टाªइजोफाॅस 40% ई. सी. 2.5-3 मिली दवा प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।
३.रस चूसने वाले कीट
फसल पर हरा फुदका, सफेद मक्खी, माहो तथा थ्रिप्स का प्रकोप होता है। ये सभी कीट पत्तियों से रस चूसते हैं, जिससे पौधे की बढ़वार रूक जाती है तथा उपज में कमी
आती है।
नियंत्रण
- इनके नियंत्रण के लिए डायमेथोएट 30 ई.सी. 1 मि. ली. दवा प्रति लीटर पानी की दर से या मिथाईल डिमेटान 25 ई. सी. 2 मि. ली. दवा प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें
- थायाेि मथोक्साॅम 25% डब्ल्यू जी. 5 ग्राम दवा प्रति टंकी पानी की दर से छिड़काव करं।
४.पीला मोजेक रोग
नियंत्रण
- रोग प्रतिरोधक किस्म जैसे मूंग की टी. जे. एम.-3, टी. एम.-7 तथा उड़द की टी. यू. -94-2, पी. यू.-30, पी. डी. यू. -1 आदि की बुवाई करें।
- यह रोग सफेद मक्खी द्वारा फैलता है। अतः सफेद मक्खी नियंत्रण के लिए थायोमिथोक्साम 70 डब्ल्यू. एस. (क्रुजर) कीटनाशक दवा 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज उपचारित कर बुवाई करें।
- बुवाई के 10 और 45 दिन की अवस्था पर इमिडाक्लोप्रिड (कान्फिडोर/जोश/मीडिया/टाटामिडा) 100-125 मि. ली. दवा प्रति हे. की दर छिड़काव करें।
५.भभूतिया रोग
इस रोग को बुकनी रोग के नाम से भी जाना जाता है। यह रोग फसल की प्रारंम्भिक अवस्था (10-15 दिन) से फल्लीयाॅ लगने तक कभी भी देखा जा सकता है। यदि रोग फसल की प्रारंम्भिक अपस्था पर आता है, तब रोग ग्रसित पौधे पूरी तरह सूख जाते हैं। इस रोग मे पत्तियों, शाखाओं एंव फल्लियों पर सफेद चूर्ण सा दिखाई देता है।
नियत्रण:
- रोग प्रतिरोधक किस्म की बुवाई करें। जैसे उड़द की एल.बी.जी.-17
- घुलनशील गधंक 3 ग्राम प्रति लीटर पानी या कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।
६.मेक्रोफोमिना ब्लाइट रोग
उड़द, मुॅग में यह रोग मेक्रोफोमिना फेजियोलिना नामक फंफूद से होता है। इस फंफूद से पौध सड़न भी होता है । प्रारम्भ में भूरे रंग के धब्बे पत्तियों के निचले भाग में बनते है, जो बाद में ऊपर भी दिखाई देने लगते है। अनुकूल वातावरण जैसे अत्यधिक नमी और बरसते पानी में धब्बे आकार में बढ़ते जाते हैं तथा दूसरे पौधो पर भी फैलते हैं। फसल धब्बों से इतनी बुरी तरह रोग ग्रस्त हो जाती है, कि ऐसा लगता है मानो सारे पौधे झुलस गये हो।
नियंत्रण:
- इसके नियत्रं ण के लिए कार्बन्डाजिम 1 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।
स्रोत-
- कृषि विज्ञान केन्द्र