आमा हल्दी की खेती

परिचय

आमा हल्दी का वानस्पतिक नाम कुरकुमा एमाड़ा है तथा यह जिंजीवेरेशी कुल की सदस्य है । आमा हल्दी का उत्पादन आन्ध्रप्रदेश, उड़ीसा, बिहार, तामिलनाडु, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश एवं मध्यप्रदेश के कुछ स्थानों पर भी इसकी खेती सफलता पूर्वक की जा रही है ।

 

रासायनिक संगठन

वाष्पीय आसवन से आकंद में एक प्रतिशत तेल मिलता है जिसमें पाइनीन, कुरंकुमीन, केम्फर, ओसीमीन व टरमेसेन आदि रसायनिक पदार्थ पाये जाते हैं ।

 

जलवायु एवं तापक्रम

गर्म एवं नम जलवायु वाले स्थानों में आमा हल्दी की पैदावार अच्छी होती है । इसके साथ ही समुद्र तल से 1300 मीटर की ऊँचाई वाले स्थानों पर भी आमा हल्दी का सफल उत्पादन किया जा सकता है । आमा हल्दी उत्पादन में तापक्रम का विशेष महत्व है । भरपूर उत्पादन के लिए 12 से.ग्रे. से कम तापक्रम नहीं होनी चाहिए ।

 

भूमि की तैयारी

आमा हल्दी की खेती के लिए दोमट या रेतीली मिट्टी की आवश्यकता होती है, इसके साथ ही जल निकास की व्यवस्था भी उचित होना चाहिए । आमा हल्दी की बुवाई के पूर्व अप्रैल या मई माह में खेतों की अच्छी तरह से गहरी जुताई कर लेना चाहिए ताकि मिट्टी पलट जाये, फिर 5 -6 जुताई करके पाटा चलायें ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए ।

 

बीज की बुवाई

आमा हल्दी की बुवाई का उपयुक्त समय जून से लेकर जुलाई तक रहता है । इसकी बुवाई के लिए बीज के रूप में प्रकंद का प्रयोग किया जाता है । प्रकंद पूरे या टूटे हुए प्रकंद जिनका वनज 35 – 44 ग्राम होता है बोनी के लिए उपयुक्त होते हैं । प्रकंदों को बोने के पूर्व 0.3  डायथेन एम-45 और 0.5  मेलाथियान के घोल में 30 मिनिट तक डुबाना चाहिए । इसकी बोनी समतल और रिज एवं फरों दोनों तरीके से भारत वर्ष में की जाती है । इसको जमीन में 25 ग 30 से.मी. की दूरी पर बोया जाता है । रिज एवं फरो तरीके से बोनी करने से कतार से कतार की दूरी 25 से.मी. एवं पौधे से पौधों की दूरी 25 से.मी. रखनी चाहिए ।

 

बीज की मात्रा

इसके अच्छे उत्पादन के लिए 8 –  10 क्विंटल प्रकंद प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है ।

 

खाद एवं उरर्वक

हल्दी की खेती के लिए खाद एवं उर्वरक की अधिक मात्रा की आवश्यकता होती है । क्योंकि यह हल्की भूमि में उगाई जाती है । खाद एवं उर्वरक की प्रति हेक्टेयर मात्रा निम्नानुसार है|

1.   गोबर  की खाद कम्पोस्ट 30 क्विंटल
2.    टमोनियम सल्फेट 200 किलो
3.    म्यूरेट आॅफ पोटाश 150 किलो
4.    सुपर फास्फेट 200 किलो
5.    यूरिया 65 किला ( टाॅप ड्रेसिंग )

 

सिंचाई

गर्मियों में 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई की जाती है ताकि भूमि में नमी की पर्याप्त मात्रा होना चाहिए ।

 

निंदाई – गुड़ाई

भरपूर पैदावार लेने के लिए कम से कम 2 – 3 बार निंदाई – गुड़ाई की आवश्यकता होती है इसके साथ – साथ प्रकंदों की अच्छी बढ़वार के लिए मिट्टी भी चढ़ाना आवश्यक है ।

 

कटाई

आमा हल्दी बोने से 9 माह के बाद कटने के लिए तैयार हो जाती है और हाथ से प्रकंदो को चुन लिया जाता है । प्रकंदों की मिट्टी हटाने के लिए इसे पानी से धोया जाता है ।

 

उपज

आमा हल्दी की अच्छी पैदावार लेने के लिए उपजाऊ भूमि, उन्नत जाति तथा फसल की उचित देखभाल की आवश्यकता होती है । वैसे औसत उपज 200 -250 क्विंटल कच्ची हल्दी तथा 40 – 50 क्विंटल सूखी आमा हल्दी प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है । आमा हल्दी के प्रकंदों को पानी में उबाल कर सूरज की गर्मी से सुखाया जाता है ।

 

पौध संरक्षण

कीट

तना छेदक जैसा की नाम से ही ज्ञात है कि इस कीट की सूड़ियाँ तने के अंदर ही अंदर छेदकर बढ़ती जाती हैं जिसके परिणम स्वरूप् तना सूख जाता है इसकी रोकथाम के लिए सूखे एवं ग्रसित तनों को काटकर या उखाड़कर खेत में बाहर नष्ट कर देना चाहिए ।

रोग

आमा हल्दी की फसल पर रोग एवं व्याधि का प्रकोप भी कम होता है । मुख्य रूप से जड़ विगलन एवं धब्बा रोग ही मुख्य रूप से आमा हल्दी को प्रभावित करते हैं ।

1.प्रकंद एवं जड़ विगलन

इस रोग का कारक पीथियम एफेनीडरमेटम नामक फफूंदी है इस रोग में पहले पत्तियां पीली पड़ती हैं और फिर धीरे-धीरे पूरा पौधा पीला पड़ जाता है । इसके साथ ही भूमि के समीप का भाग पीला एवं कोमल हो जाता है और प्रकंद भी सड़ जाता है और पौधे को खींचने पर पौधा हाथ में आ जाता है तथा सड़ा हुआ प्रकंद जमीन के अंदर ही रह जाता है ।

2.पत्तियों का धब्बा रोग

यह रोग टेफरीना तथा कोलेटोट्राईकम आदि फफूंदों के द्वारा फैलते हैं, रोग की तीव्रता में पत्तियां पीली पड़ कर सूख जाती हैं तथा उपज में भारी कमी आती है ।

रोकथाम

जड़ विगलन तथा धब्बा रोगों की रोकथाम के लिए बोर्डो मिश्रण ( 1 प्रतिशत ) कम से कम 3 छिड़काव 15 – 15 दिन के अंतराल से करना चाहिए ।

 

स्रोत-

  •     जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर,मध्यप्रदेश
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