अरहर दलहनी फसलों में क्षेत्रवार एवं उत्पादन की दृष्टि से चना के बाद दूसरा स्थान है । इसके मुख्य उत्पादक राज्य – महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, गुजरात आँध्र प्रदेश एवं बिहार हैं । अरहर की फसलें अनेक प्रकार के रोगों से प्रभावित होती है । इन्ही रोगों में से एक है श्बांझपन मोजाइक रोग (Syerility Mosaic Disease)। इस रोग से अरहर की उत्पादन में कमी, इस बात पर निर्भर करता है कि पौधों में रोग का संक्रमण फसल की किस अवस्था में हुआ है ।
पौधों में संक्रमण बुआई के 45 दिन से पहले होने पर उत्पादन में कमी 95-100% तक होता है जबकि बुआई के 45 दिन के बाद उत्पादन में कमी, प्रभावित शाखाओं में संक्रमण पर निर्भर करती है और 26-97%तक होती है । देर से संक्रमण होने पर, पौधों के कुछ हिस्सों में रोग के लक्षण दिखाई देते हैं जिस हम आंशिक बाँझपन(Partial Sterility) कहते हैं ।
आंशिक रूप से प्रभावित पौधों से उत्पादित बीज सूखे, मुड़े-तुड़े एवं हल्के रंग के होते हैं जो अंकुरित नहीं हो सकती है । गम्भीर रूप से प्रभावित पौधे पूरी तरह से बाँझ (Sterile) होते है। भारत के विभिन्न राज्यों में इस रोग का संक्रमण इस प्रकार है – बिहार-21.40% उत्तर प्रदेश-15.40% तमिलनाडु-12.80% गुजरात-12.20% एवं कर्नाटक -9.80% है ।
रोग के लक्षण
बांझपन मोजेक रोग का सबसे सामान्य लक्षण पौधों में पत्तियों का छोटा होने के साथ, हल्के पीले एवं गहरे रंग का मोजेक हरे-पीले धब्बेदार का होता है । पौधे अनेक शाखाओं (Profuse branching) मेें बँटी होती हैं एवं इसका विकास रुक (Stunted growth) जाता है और फूल नहीं लगते हैं । यदि इक्का-दुक्का फूल बन भी जाते हैं तो इसमें फल एवं बीज नहीं बनते हैं।
रोग के कारक
बांझपन मोजेक रोग एक विषाणु जनक रोग है जो कि अरहर बांझपन मोजाइक विषाणु (Pegeonpea Sterility Mosaic Virus,PPSMV) से होता है । यह रोग एक एरिओफ्इड माईट (Aceria cajani) से फैलता है जो कि बहुत छोटा, गुलाबी रंग में (Spindle) आकार का होता है । ये पौधों के कोमल शाखाओं पर दूधिया सफेद रंग के अंडे देती हैं । इसके निम्फस् (nymph) पत्रक में लपेटे हुए पाये जाते हैं ।
एरिओफ्यिड माइट अतिविशिष्ट एवं काफी हद तक अरहर एवं अपने जंगली रिस्तेदारों जैसे कि कजनस सकरबइओइड्स एवं(Cajanus scarabaeoides) कजनस कजनिफोलियस (C. cajanifolius) इत्यादि इत्यादि पर पाया जाता है । इसके वयस्क की लम्बाई 200-250 µउ होता है । इसका जीवन चक्र बहुत छोटा एवं दो हफ्तों का होता है जिसमें अंडे एवं दो भ्रूण स्थिति आते हैं अरहर बाँझापन मोजाइक विषाणु से संक्रमित पौधों पर माइट हमेशा पत्रक के निचले सतह पर और ग्रसित पत्तियों पर मुख्य रूप से पाया जाता है ।
बाँझापन मोजाइक विषाणु ग्रसित क्षेत्रों में अरहर की फसल में नियमित रूप से प्रकट होते हैं और उपयुक्त परिस्थितियों में महामारी का रूप ले लेता है । इस रोग के जानपदिक के लिए, इसके विषाणु (PPSMV), एरिओफ्ठउ माइट (vector) अरहर की देशी किस्में, विविध कृषि प्रणाली तथा आप्रत्याशित पर्यावरण का होना है । जब मौसम में 60% सापेक्ष आद्रता तथा 10-25 c और 25-350 c का तापमान रहता है तब खेतों में एरिओफ्इड माइट की संख्या बढ़ने लगती है ।
सिंचाई के तरह या सिंचित क्षेत्रों के आसपास उगाई जाने वाले फसलों में खासकर गन्ने वाले क्षेत्रों में जल्दी से इसका संक्रमण हो जाता है । एरिओफ्इड माइट गर्मिंयों के महीनों में बारहमासी अरहर पर जीवित रहता है । यह हवा के बहाव के द्वारा पौधे से पौधे में संक्रमण फैलता है । अरहर बाँझपन मोजाइक विषाणु के भारत में पाँच संस्करण (variant) पाये जाते हैं जिसमें कर्नाटक संस्करण अधिक संक्रमण वाला है । सही संस्करण की जानकारी ना होने के कारण इस रोग के प्रबंधन में कठिनाई हो रही है ।
प्रबंधन
बुआई से पहले
1.टरहर के बारहमासी किस्मों की बुवाई न करें तथा रैटून (tatoon) फसल न लें ।
2.निम्नलिखित रोग प्रतिरोधी किस्मों का इस्तेमाल करें –
अल्प अवधि (130-140 दिन): जी टी 101, बनस
मध्यम अवधि (170-180): विपुला, लोचन, मारूति, बी.एस.एम.आर. 853, बी.डी.एन.711, बी.एस.एम.आर.736, बी.डी.एन.708
दीर्घ अवधि (190-220 दिन): पूसा 9, बहार, एन.डी.ए. 1, एन.डी.ए. 2, अमर, एम.ए.एल.13 ।
कई अध्ययनों से पता चला है कि बाँझपन का प्रकोप- बुआई की तिथियाँ, पौधों से पौधों की दूरी या बाॅर्डर एवं अंतः फसल से थोड़ी कमी आती है ।
बुआई के बाद
1.फसल की नियमित निरीक्षण करनी चाहिए तथा प्रारंभिक चरण में ही संक्रमित पौधों को उखाड़ कर उसे नष्ट कर देना चाहिए ।
2.टगर प्रारंभिक लक्षण खेतों में ज्यादा दिखने लगे तो प्रादेशीय स्वीकृत रासायनिक कीटनाशकों जैसे कि (Dimethoate) 30 EC (1.7मि.ली./लीटर) का छिड़काव करें ।
स्रोत-
- भा.कृ.अनु.प.-राष्ट्रीय समेकित नाशीजीव प्रबंधन अनुसंधान केन्द्र
पूसा परिसर, नई दिल्ली