अरहर की उन्नत खेती / Pigeon pea cultivation

अरहर की खेती अकेले या दूसरी फसलो के साथ सहफसली खेती के रूप में भी कर सकते है, सहफसली खेती के रूप में ज्यादातर ज्वार  बाजरा मक्का सोयाबीन की खेती की जा सकती है।

 

अरहर की उन्नतशील प्रजातियाँ

तुवर की खेती के लिए दो प्रकार की उन्नतशील प्रजातियाँ उगाई  जाती है पहली अगेती प्रजातियाँ  होती है, जिसमे उन्नत प्रजातियाँ है पारस, टाइप २१, पूसा ९९२, उपास १२०, दूसरी पछेती या देर से पकने वाली प्रजातियाँ है बहार है, अमर है, पूसा ९ है, नरेन्द्र अरहर १ है आजाद अरहर १ ,मालवीय बहार, मालवीय चमत्कार जिनको देर से पकने वाली प्रजातियाँ के रूप से जानते है।

 

अरहर की उन्नत किस्में

पर्वतीय श्रेत्र मे शीध्र तैयार होने वाली किस्मो का प्रयागे करना चाहिए एवं मैदानी श्रेत्र मे अगेती किस्मो के साथ ही पछेती किस्मो को लगाया जा सकता है। अरहर की प्रजातिय़ो का विवरण निम्नवत है।

 

अरहर की खेती के लिए बुबाई का समय

पर्वतीय श्रेत्र मे बोने का उपयुक्त समय मध्य अप्रैल से मध्य मई है। तराई-भावर एवं मैदानी श्रेत्र मे शीध्र पकने वाली प्रजातियां को सिंचत श्रेत्र मे जून के मध्य तक बुवाई कर देना चाहिए जिससे फसल नवम्बर के अतं तक पक कर तैयार हो जाए और दिसम्बर के प्रथम पखवाडे़ मे गहेॅू की बुवाई सम्भव हो सके। दरे से पकने वाली प्रजातिय़ो को जुलाई माह मे लगाना चाहिए।

 

अरहर की फसल के लिए बीज एवं बुवाई की विधि

बुवाई हल के पीछे कूडो मे करनी चाहिए। प्रजाति तथा मौसम के अनुसार बीज की मात्रा तथा बुवाई की दूरी निम्न पक्रार रखनी चाहिए। बुवाई के  20-25 दिन बाद पौधे के बीच की दुरी सघन पौधे को निकाल कर निश्चित कर दने चाहिए।

 

बीजोपचार

सर्वप्रथम एक कि.ग्रा. बीज को 2 ग्रा. थीरम व 1 ग्रा. कार्बेन्डाजिम से उपचारित करे। इसके बाद राइजाेबयम कल्चर से बीजापेचार करे। एक पैकटे राइजाेबयम कल्यर 10 कि.ग्रा. बीज के लिए पर्याप्त होते है। बीज को पानी से हल्का पीला कर राइजाेबयम कल्चर से उपचारित करे तथा तुरन्त बुवाई कर दे।

 

अरहर की खेती मे खाद एव उर्वरक का प्रयोग

इसकी अच्छी उपज के लिए 15 कि.ग्रा. नत्रजन तथा 40-50 कि.ग्रा. फास्फारेस की प्रति हैक्टर आवश्यकता होती है। सिगंल सुपर फास्फटे 250 कि.ग्रा/है. या डाई अमाेनयम फॉस्फेट 100 कि.ग्रा./हैपिंक्तया मे बुवाई के समय चोगा या नाई की सहायता से देना चाहिए जिससे उर्वरक का बीज केसाथ सम्पर्क न हो। यह उपयुक्त होगा कि फास्फारेस की सम्पूर्ण मात्रा सिगंल सुपर फास्फटे से दी जाए जिससे 20 कि.ग्रा. सल्फर की पिर्त भी हो सके।

 

अरहर की खेती में सिंचाई का समय

तुवर की बुवाई उचित नमी होने पर करनी चाहिए। नमी के अभाव मे पलवे करके बोने चाहिए। खते मे कम नमी की अवस्था मे एक सिचांई फलियॉ बनने के समय सितम्बर माह मे अवश्य कर दे।

 

अरहर की फसल के लिए निराई-गुड़ाई एवं खरपतवार नियंत्रण

बुवाई के एक माह के अन्दर ही एक सिचांई करनी चाहिए। यदि अरहर की शुद्ध खते की गयी है तो दसूरी निराई पहली निराई के 20 दिन बाद करनी चाहिए। खरतपवारो कोरासायनिक विधि से नष्ट करने के लिए 2 कि.ग्रा. एलाक्लारे (लासो 4 लीटर) को 500-600 लीटर पानी मे घालेकर बुवाई के तुरन्त बाद पाटा लगाकर जमाव से पर्वू छिडक़ाव करे।

 

अरहर कीट नियंत्रण

अरहर की फसल मे होने वाले कीटों का विवरण।

1.फलीबेधक कीट

इनकी गिडारे फलिय़ों के अदंर घुसकर दाने को खाकर हानि पहुॅचाती है। प्रौढ कीटो का अनुश्रवण करने के लिए 5-6 फरेमेने प्रपचं/है. की दर से फसल मे फूल आते समय लगाय़े यदि 5-6 माथ प्रति प्रपचं दो-तीन दिन लगातार दिखाई देतो निम्नलिखितमे किसी एक दवा का प्रयागे फसल मे फूल आने पर करना चाहिए। यदि आवश्यक हो तो दसूरा छिडक़ाव 15 दिन के बाद करे, इससे अरहर की फसल का कीटो से बचाव किय़ा जा सकता है।

1. एन.पी.बी. 500 सूडी तुल्याकं अथवा बी.टी. 1 कि.ग्रा./है. की दर चना फली बेधक के नियत्रंण के लिए प्रयागे करे।

2. निबोली 5 प्रतिशत 1 प्रतिशत साबुन का घोले

3. इन्डोक्साकार्व 14.5 ई.सी. की 400-500 मि.ली. प्रति है. की मात्रा

 

2.फली मक्खी

यह फली के अदंर दाने को खाकर हानि पहुँचाती है इसके उपचार हेतु फूल आने के बाद डाईमिथाऐट 30 ई.सी. एक लीटर प्रति हैक्टर की दर से प्रभावित फसल पर छिडक़ाव करे। निबोली 5 प्रतिशत का भी छिडक़ाव कर सकते है।

 

अरहर रोग नियंत्रण

1. उक्ठा रोग

यह फ्यजूेरयम नामक कवक से हाते है। यह पौधो मे पानी व खाद्य पदार्थ के सचांर को राके दते है जिससे पत्तियॉ पीली पडक़र सूख जाती है और पौधा सूख जाता है। इसमे जडें सडक़र गहरे रगं की हो जाती है तथा छाल हटाने पर जड से लेकर तने की ऊँचाई तक काले रगं की धारियॉ पड जाती है। इसका अग्रानुसार उपचार करना चाहिए।

1. जिस खते मे उकठा रागे का प्रकापे अधिक हो उस खते मे 3-4 साल तक अरहर की फसल नही लगानी चाहिए।

 2. ज्वार के साथ अरहर की सहफसल लेने से कुछ हद तक उकठा रागे का प्रभाव कम हो जाता है।

3. थीरम एवं कार्बेन्डाजिम को 2:1 अनुपात मे मिलाकर 3 ग्राम प्रति कि.ग्राबीज की दर से बीज उपचारित करना चाहिए।

4. रागे अवराधी जातियॉ पतं अरहर 3, पतं अरहर 291, वी.एल. अरहर 1, नरन्द्र अरहर 1 उगाय़े।

 

२. बंझा रोग

इसमे ग्रसित पौधे मे पत्तियॉ अधिक लगती है। फूल नही आते जिससे दाना नही बनता है पत्तियॉ छाटे तथा हलके रगं की हो जाती है। यह रोगी माइट द्वारा फैलता है। फसल मे मिथाइल आिडमटेन की एक लीटर प्रति 800 लीटर पानी मे घालेकर 3-4 छिडक़ाव 15 दिन पर करे। प्रथम छिडक़ाव रागे के लक्षण दिखाई दते ही करे। रोगी पौधों को काट कर जला दे। बीमारिय़ो एवं कीट नियत्रंण हेतु एकीकृतनाशी जीव प्रबंधन मोड्यल।

 

३.फाइटोपथोरा तना झुलसा

इस रोग से पत्तियॉ पीली पड जाती है। पौधे कमजारे पड जाते है तथा तना झुल जाता है।

 

फसल का उपचार

1. अरहर के खेत  मे जल निकास का उचित प्रबंधन करे तथा बुवाई मेडो पर करे।

2. मैटिलाक्सिल से 5 ग्रा./कि.ग्रा. बीज उपचार करे तथा इसी दवा का 2.5 कि.ग्रा./हैक्टर 2-3 छिडक़ाव करे।

3. अरहर की बुवाई जनू के मध्य मे करे।

 

फसल की कटाई

अरहर की जल्दी पकने वाली प्रजातियाँ की कटाई वुवाई के १४० दिन से १५० दिन अथार्त १५ नवम्बर से १५ जनवरी तक की जाती है देर से पकने वाली प्रजातियाँ जो किसान भाई उगाते है ,उस फसल की कटाई २६०  से २७० दिन अथार्त  १५ मार्च से १५ अप्रैल की वीच कटाई की जाती है ।

 

अरहर की फसल की उपज प्रति हेक्टर

उपरोक्त सघन पद्वतियॉ अपनाकर अगते किस्मो की उपज 16-20 कुन्तल/हैक्टर एवं पछते किस्मो की उपज 25-30 कुन्तल/हैक्टर तक प्राप्त किया जा सकता है।

 

Source-

  • agriavenue.com
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