अरबी के कीट एवं रोग इस प्रकार है-
१.तंबाखु की इल्ली
अरबी को हानि पहुचाने वाला यह एक प्रमुख कीट हैं इसकी इल्लियाॅं पत्तियों के हरित भाग को चटकर जाती हैं, जिससे पत्तियों की षिराएॅं दिखने लगती हैं और धीरे-धीरे पूरी पत्ती सूख जाती हैं कम संख्या में रहने पर इनको पत्ते समेत निकाल कर नष्ट कर देना चाहिए। अधिक प्रकोप होने पर किवनालफाॅस 25 ई.सी. 2 मिली. प्रति लीटर पानी या प्रोफेनोफाॅस 3 मिली./लीटर पानी का छिडकाव करना चाहिए।
२.एफिड (माहो) एवं थ्रिप्स
एफिड (माहो) एवं थ्रिप्स रस चूसने वाले कीट है और पत्तियों का रस चूस कर नुकसान पहुचाते है, जिससे पत्तियाॅं पीली पड़ जाती हैं पत्तियों पर छोटे काले धब्बे दिखाई देते हैं। अधिक प्रकोप होने पर पत्तियां सूख जाती हैं क्विनाल्फोस या डाइमेथियोट के 0.05 प्रतिशत घोल का 7 दिन के अंतराल पर दो से तीन छिडकाव कर रस चूसने वाले कीटो को
नियंत्रित किया जा सकता हैं।
३.फाइटोफ्थोरा झुलसन (पत्ती अंगमारी)
अरबी की फसल का यह मुख्य रोग हैं यह रोग फाइटोफथोरा कोलाकेसी नामक फफूंदी के कारण होता है। इस रोग मे पत्तियाॅं, कंदों, पुष्प पुंजो पर रोग के लक्षण दिखाई देते हैं। पत्तियों पर छोटे-छोटे गोल या अण्डाकार भूरे रंग के धब्बे पैदा होते है। जो धीरे-धीरे फैल जाते हैं। बाद में डण्ठल भी रोग ग्रस्त हो जाता हैं एवं पत्तियां गलकर गिरने लगती हैं एवं कंद सिकुड कर छोटे हो जाते हैं। कंद बोने से पूर्व रिडोमिल एमजेड.- 72 से उपचारित करे। खडी फसल मे रोग की प्रारम्भिक अवस्था मे रिडोमिल एम.जेड-72
की 2.5 ग्रा. मात्रा प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर छिडकाव करें।
४.सर्कोस्पोरा पर्ण चित्ती (पत्ती धब्बा)
पत्तियों पर छोटे वृताकार धब्बे बनते हैं जिनके किनारे पर गहरा बैंगनी तथा मध्य भाग राख के समान होता हैं परन्तु रोग की उग्र अवस्था में यह धब्बे मिलकर बडे धब्बे बनते हैं, जिससे पत्तियाॅं सिकुड जाती हैं एं फलस्वरूप पत्तियाॅं झुलसकर गिर जाती है। रोग की प्रारम्भिक अवस्था मे मेकोंजबे 0.3 प्रतिशत का छिडकाव करे एवं क्लोरोथेलोनिल की 0.2 प्रतिशत मात्रा का छिडकाव करें।
५.दसीन मोजाईक
इसके प्रकोप से पत्तियाॅं तथा पौधे छोटे रह जाते हैं पत्तियों पर पीली सफेद धारियाॅं पड जाती हैं प्रभावित पौधो मे बहुत ही कम मात्रा मे कंद बनते हैं। इस रोग के प्रबंधन हेतु रोग मुक्त फसल से बीज लेना चाहिए। रस चूसने वाले कीट जो की इस रोग को फैलाते हैं, का प्रभावी नियत्रं ण करना चाहिए प्रभावित पौधो को कंद समेत उखाड कर नष्ट करके इस रोग को फैलने से रोका जा सकता हैं।
६.कंद का शुष्क सडऩ रोग
यह रोग भण्डारण मे कंदो को क्षति पहुॅंचाते हैं संक्रमित कंद भूरे, काले, सूखे, सिकुडे कम भार वाले होते हैं तथा कंद के उपरी सतर पर सुखा फफूंद चूर्ण बिखरा रहता हैं। लगभग 60 दिन मे संक्रमित कंद पूरी तरह से सड़ जाता है। और सडे कंदो से अलग किस्म की बदबू आती हैं बीज हेतु प्रयुक्त होने वाले कंद को 0.1 प्रतिशत मरक्यूरिकक्लोराइड या 0.5 प्रतिशत फार्मेलिन से उपचारित कर भण्डारित करना चाहिए।
स्रोत-
- कृषि विज्ञान केंद्र