अन्तराशस्य व वनचारागाह पद्धति

अन्तराशस्य व वनचारागाह भू-प्रबंधन की टिकाऊ प्रणालियाँ हैं, जिसमें एक ही प्रक्षेत्र से विभिन्न तरह के उत्पाद मिलते हैं व अधिक पैदावार मिलती है ।

अंतराशस्य फसलें

राजस्थान के शुष्क क्षेत्रों में किसान सेवण के साथ अन्य फसलें भी उगाते हैं व जुताई के समय सेवण के बूजों को खेतों में बचाकर रखते हैं । इन बूजों के बीच फसलों की खेती करते हैं । इससे किसानों को पशुओं हेतु वर्षा के बाद जल्दी ही चारा मिलने लगता है । सेवण घास की पट्टियों की चैड़ाई 3, 6 और 9 मीटर रखनी चाहिए । इन पट्टियों के बीच आवश्यकतानुसार जगह छोड़ी जाती है, जिसमें ग्वार, मोठ, बाजरा, आदि फसलों की खेती की जाती है । पट्टियों के समय अगर फसलों की पैदावार नहीं हो तो प्रभावी वर्षा की स्थिति में सेवण घास से कुछ चारा अवश्य ही मिल जाता है ।
 

वनचारागाह

वनचारागाह पद्धति में चारा, ईंधन व लकड़ी देने वाले पेड़ों तथा घासों को साथ-साथ लगाया जाता है । इस पद्धति में कम लागत के साथ ही लम्बे समय तक फायदा मिलता है । शुष्क क्षेत्र में बार-बार पड़ने वाले अकाल की परिणति पशुधन की हानि में होती है । वर्षा यदि मामूली हो या नहीं हो तो चारागाह से भी चारा मिलना मुश्किल हो जाता है । ऐसी स्थिति में जो कि शुष्क क्षेत्र में सामान्य बात है, का सामना करने के लिए चारागाह क्षेत्र में पत्तचारा वृक्षों का होना आवश्यक है, जिनसे कुछ चारा अवश्य मिल जाता है । यदि नया वनचारागाह विकसित करना हो तो पौधों को उचित दूरी पर लगाकर उनके बची घास की या तो बुआई करें या जड़ों द्वारा लगायें ।

इस  पद्धति में पेड़ों को एक समान दूरी जैसे 10 मीटर ग 10 मीटर पर लगाना चाहिए । प्रथम वर्ष में छः महीेने या एक वर्ष पुरानी पौध वर्षा होने के बाद रोपित करनी चाहिए । पौधों के लिए ग्रीष्मकाल में 1 मीटर ग 1 मीटर या 50 से.मी. ग 50 से.मी. नाप के गड्डे तैयार कर लेने चाहिए तथा इनमें खाद आदि मिलाकर पौध रोपित करनी चाहिए । पहले दो वर्षों तक इन पौधों की देखभाल अच्छी तरह से करनी चाहिए । उचित वृक्ष लगाने से चारे की कमी के समय इससे गुणवत्ता का चारा प्राप्त होता है । वृक्षों से जमीन में नत्रजन की मात्रा बढ़ती है, ईंधन व इमारती लकड़ी भी मिलती है एवं वृक्षों से होने वाले अन्य लाभ भी होते हैं ।

पेड़ चरने वाले जानवरों को छाया भी प्रदान करते हैं । एक आदर्श चारागाह में लाभदायक वृक्ष जैसे खेजड़ी (प्रोसोपिस सिनरेरिया), सिरेस (एलबिजिया लेबक), रोहिड़ा (टेकोमेला अनडुलेटा), अंजन पेड़ (हार्डविकिया बाइनेटा), कुमट (अकेशिया सेनेगल), कीकर (अकेसिया निलोटिका किस्म क्यूपरिसीफोर्मिस), गोंदा (कोर्डिया मिक्सा) आदि को लगाना चाहिए । पेड़ों को चारागाह की सीमा व रास्तों के किनारों पर भी लगाया जा सकता है ।

 

स्रोत-

  • केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान, जोधपुर- 342 003, राजस्थान
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