अनार के पौधों व फलों को रोगों व कीड़ो से काफी नुकसान होता है अतः इनकी रोकथाम करना बहुत आवश्यक है । प्रमुख रोगों के लक्षण, कीड़ों की पहचान एवं उनके नियन्त्रण के उपाय निम्नलिखित है:-
1.पत्ती व फल धब्बा रोग
इस रोग का प्रकोप अधिकतर ष्मृग बहारष् की फसल में होता है । वर्षा ऋतु में अधिक नमी के कारण पत्तियों और फलों के ऊपर फफूंद के भूरे धब्बे दिखाई देते हैं । जिससे फलों के बाजार मूल्य में गिरावट आ जाती है । इसकी रोकथाम के लिए मैन्कोजेब (0.2:) या जाइनेब (0.2:) फफूंदनाशी दवा का 15-20 दिन के अन्तराल पर तीन-चार बार छिड़काव धब्बे दिखाई पड़ते ही करने चाहिए । फल व पत्तियों पर बैक्टीरिया के कारण भी धब्बे पड़ जाते हैं जिससे फल की गुणवत्ता खराब होती है ।
2.फल सड़न रोग
इस रोग से फल सड़ने लगते हैं अतः रोग के लक्षण आने पर बेविस्टीन कवकनाशी के 0.1 प्रतिशत (ग्राम दवा प्रति लीटर पानी में) घोल के दो तीन छिड़काव 15 दिनों के अन्तर पर करने चाहिए ।
३.छीमक या उदई
शुष्क क्षेत्रों में अनार के पौधों की जड़ों एवं तनों में दीमक का अत्यधिक प्रकाप होता है जिससे पौधे सूख जाते हैं । इस क्षेत्र में अनार की पौध स्थापना में दीमक का प्रकोप एक गंभीर समस्या है । इससे बचाव के लिए पौध रोपण के समय ही प्रत्येक गड्ढे के भरावन मिश्रण में 50 ग्राम मिथाइल पैराथियान चूर्ण (5:) मिलाना चाहिए । पौधों की प्रत्येक सिंचाई करते समय ष्क्लोरोपायरिफासष् (डरमेट) कीटनाशक दवा को 5-10 बूंद पानी के साथ थालों में देते रहना चाहिए । इस प्रकार दीमक से बचाव का प्रभावी तरीका अपना कर पौध स्थापना में अच्छी सफलता मिल सकती है ।
४.अनार की तितली
यह अनार के फलों का सबसे हानिकारक कीट है । प्र्रौढ़ तितली द्वारा दिये गये अंडों से निकली सूण्डियां फलों को छेदकर अन्दर प्रवेश करती हैं तथा फल के गूदे को खाती रहती है । इसके नियंत्रण के लिए वर्षा ऋतु में फल विकास के समय 0.2 प्रतिशत डेल्टामेथ्रीन या 0.03 प्रतिशत फाॅस्फोमिडान कीटनाशक दवा के घोल का 15-20 दिन के अन्तराल पर दो बार छिड़काव करना लाभदायक पाया गया है ।
५.तनाबेधक
वयस्क कीट नयी कोपलें, पत्तियां और टहनियां खाते हैं जबकि गिडार तने में सुराख बनाकर अन्तःऊतक को नष्ट कर देते हैं । जिससे तना कमजोर हो जाता है तथा पौधे सूखने लगते हैं । तनाबेधक कीट से बचाव के लिए 0.3 प्रतिशत डायक्लोरोवास घोल में भीगी रुई को कीट के प्रवेश द्वार में ठूंसकर गीली मिट्टी का लेप कर देते हैं । बाग प्रबन्ध के तरीकों तथा आवश्यक काट-छांट करके भी इन कीड़ों की रोकथाम की जा सकती है ।
६.माइट
माइट अत्यन्त ही सूक्ष्म जीव है जो प्रायः सफेद एवं लाल रंग में पाये जाते हैं । ये जीव अनार की पत्तियों के ऊपरी एवं निचले सतह पर शिराओं के पास चिपक कर रस चूसते रहते हैं । माइट ग्रसित पत्तियां ऊपर की तरफ मुड़ जाती हैं और पूर्ण ग्रसित होने की दशा में पौधा पत्ती रहित होकर सूख जाता है । माइट का प्रकोप होते ही पौधों पर एक्साइड दवा के 0.1 प्रतिशत घोल के दो छिड़काव 15 दिन के अन्तराल पर करना चाहिए ।
७.सूत्रकृमि
सूत्रकृमि या निमैटोड अत्यन्त ही सूक्ष्म, धागेनुमा या गोल जीव होते है जो अनार की जड़ों में गांठे बना देती हैं । पौधों की पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं तथा मुड़ने लगती है । पौधों का विकास बाधित हो जाता है तथा उपज प्रभावित होती है । सूत्रकृमि ग्रसित पौधों की जड़ो को खेद कर उसमें 50 ग्राम फोरेट 10 जी डालकर अच्छी तरह मिट्टी में मिलाकर सिचाई करना लाभदायक होता है ।
मीलीबग, मोयला, थ्रिप्स आदि कीट भी अनार के पौधों के कोमल भागों का रस चूसते हैं जिससे कलियां, फूल व छोटे फल प्रारंभिक अवस्था में ही खराब होकर गिरने लगते हैं । इनकी रोकथाम के लिए मोनोक्रोटोफाॅस या डायमेथोएट कीटनाशी का 0.05 प्रतिशत (5 मि.ली. या आधा चम्मच दवा प्रति लीटर पानी में) घोल का छिड़काव करना चाहिए ।
स्रोत-
- राष्ट्रीय शुष्क क्षेत्रीय उद्यानिकी अनुसंधान केन्द्र बीछवाल, बीकानेर
अनार के तेलिया रोग सम्बंधित जानकारी
प्रिय पप्पू लाल जी
आप जिस रोग के विषय मैं बात कर रहे हैं उसकी जानकारी हमें नहीं है। हो सकता है इसका नाम कुछ और हो। क्या आप इसका सही हिंदी नाम बता सकते हैं ?
अमन