परिचय
अजवाइन ( थाईमा वलगेरिस लिना ) लैमिऐसी कुल का सदस्य है । यह एक महत्वपूर्ण सगंधीय जड़ी है जिसे पत्तियों और फूलों के लिए उगाया जाता है । इसका मुख्य उपयोग मछली और मांस वाले भोज्य पदार्थों में होता है । इसकी पत्तियों से ष्थाईम तेलष् प्राप्त होता है जिसे पूरे विश्व में औषधि के रूप में प्रयोग में लाया जाता है । यह थाईल तेल दस्तावर, एन्टीसैपटिक, कृमिनाशक, कफनाशक होता है । इसका उपयोग सांस की बीमारियों जैसे अस्थमा और ब्रोनकाइटिस में होता है । यह तेल किडनी ( गुर्दे ), आँख और खून को साफ करता है इसके अलावा इन्हें इत्र एवं शराब बनाने वाले उद्योग में भी किया जाता है ।
मिट्टी
इस फसल को हल्की परन्तु उपजाऊ और कैलकेरियस मिट्टी चाहिए । लेकिन भारी और गीली मिट्टी में नहीं उगाना चाहिए क्योंकि, इससे पौधे के सूखने का भय रहता है ।
जलवायु
इसके लिए हल्की गर्म जलवायु चाहिए । इस फसल को पहाड़ी और मैदानी भागों में उगाया जा सकता है परन्तु पहाड़ी क्षेत्र इसके लिए अधिक उपयुक्त है, अधिक ठंड इसके लिए हानिकारक है ।
प्रजातियाँ
इसकी कोई भी उन्नत किस्म विकसित नहीं की गई है ।
आवश्यक सामग्री
क्रमांक |
सामग्री |
प्रति एकड |
प्रति हे. |
1. | कलम ( संख्या) | 20,000 | 50,000 |
2. | गोबर की खाद ( टन ) | 6 | 15 |
3. | उर्वरक ( किलोग्राम)
नत्रजन |
30 | 75 |
स्फुर | 15 | 40 | |
पोटाश | 15 | 40 |
प्रवर्धन
थाईम का प्रवर्धन बीज और कलमों से किया जाता है । व्यावसायिक रोपाई के लिए फसल का प्रवर्धन टरमिल कटिंग द्वारा किया जाता है । इस उद्देश्य के लिए लगभग 10 से 12 से.मी. लम्बी कलमों जिसमें तीन से चार जोड़े पत्तियां हों, को चुना जाता है । ऐसी कलमों को पोलीथिन की थैली जिसमें, मिट्टी , रेत, नारियल हस्क, गोबर की खाद 1:1:1:1 मिली हो, में लगाया जाता है । चूंकि इसमें जड़ें आने में समस्या नहीं आती इसलिए पौधे अच्छी प्रकार से स्थापित हो जाते हैं । लगभग एक माह बाद जब कलमों से भरपूर जड़ें निकल आती हैं तो वह रोपाई के लिए तैयार हो जाता है ।
रोपाई
इस फसल को जून-जुलाई माह में मानसून के आगमन पर रोपा जाता है । रोपाई से पहले खेत की गहरी जुताई करके खेत को भुरभुरा बना लिया जाता है । बाद में खेत को प्लाटों में विभाजित कर लिया जाता है और इनमें 60 से.मी. की दूरी पर कतारें बनाकर 30 से.मी. की दूरी पर जड़ युक्त कलमों को रापा जाता है ।
सिंचाई व निंदाई
वर्षा न होने की स्थ्तिि में पहली सिंचाई रोपाई के तुरन्त बाद दी जानी चाहिए । इस फसल को एम माह तक अच्छी सिंचाई की आवश्यकता होती है । बाद में साप्ताहिक अन्तराल पर सिंचाई की जा सकती है । फसल में निंदाई समय- समय पर की जाती है । पहाड़ी क्षेत्रों में मलचिंग ठंड से बचने के लिए की जाती है ।
पौध सुरक्षा
मुख्य कीट
दीमक – दीमक के नियंत्रण हेतु 25 किलोग्राम हैप्टाक्लोर, प्रति हेक्टेयर मिट्टी में मिलाकर डाल दें और सिंचाई कर दें ।
मुख्य बीमारियां
विल्ट – विल्ट के नियंत्रण हेतु साफ सफाई रखें और 0.2 प्रतिशत बेविस्टीन का छिड़काव करें ।
कटाई एवं उपज
यह फसल लगभग 180 दिन में कटाई के लिए तैयार हो जाती है । इसकी पत्तियां और फूलों की कटाई सतह से 15 से.मी. ऊपर की जाती है, कटाई के तुरन्त बाद इन्हें छाया में ड्रायर द्वारा सुखा कर, हवा बंद डिब्बों में रख देना चाहिए, जिससे कि इसकी खुशबू को उड़ने से रोका जा सके । सूखे हुए भाग पर पाउडर बनाकर इकट्ठा कर लेना चाहिए । इस फसल से प्रति हेक्टेयर 1100 से 2200 किलोग्राम सूखी उपज प्राप्त होती है । इसमें लगभग 2 प्रतिशत तेल होता है जिससे आसवन के पश्चात् 22 से 44 किलोग्राम तेल प्राप्त होता है ।
स्रोत-
- जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय ,जबलपुर,मध्यप्रदेश